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मैं तुमसों सतिभाव कही है / तुलसीदास

(9)

मैं तुमसों सतिभाव कही है |

बूझति और भाँति भामिनि कत, कानन कठिन कलेस सही है ||

जौ चलिहौ तौ चलो चलि कै बन, सुनि सिय मन अवलम्ब लही है |

बूड़त बिरह-बारिनिधि मानहु नाह बचनमिस बाँह गही है ||

प्राननाथके साथ चलीं उठि, अवध सोकसरि उमगि बही है |

तुलसी सुनी न कबहुँ काहु कहुँ, तनु परिहरि परिछाँहि रही है ||