Last modified on 31 मई 2014, at 11:00

रटे जा राधे-राधे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

रटे जा राधे-राधे, जपे जा राधे-राधे।
 प्यारे ब्रजराज-कुमार, भजे जा राधे-राधे॥-टेक॥

 या ब्रज की महिमा भारी, नहिं जानैं अज-त्रिपुरारी,
 जहँ प्रकटे नंद-कुमार, रटे जा राधे-राधे॥-१॥

 जहँ रोहिनि-जसुमति मैया दा‌ऊ-से नेही भैया,
 नँद-बाबा करैं दुलार, भजे जा राधे-राधे॥-२॥

 जहँ अगनित सखा पियारे, खेलैं रँग न्यारे-न्यारे
 गैंयन के झुंड अपार, जपे जा राधे-राधे॥-३॥

 अति नगर सुघर बरसानौ, माँ कीरति, पितु वृषभानौ,
 प्रगटी राधा सुख-सार, रटे जा राधे-राधे॥-४॥

 आनँद-घन-रासी राधे, राधे बिन मोहन आधे,
 राधा ही जीवन-सार, भजे जा राधे-राधे॥-५॥

 है राधा माधव-‌आत्मा, राधा-बल हरि सर्वात्मा,
 है महासक्ति अनिवार, जपे जा राधे-राधे॥-६॥

 है महाभावमयि राधा, प्रेमानँद-‌उदधि अगाधा,
 राधा-सँग नित्य बिहार, रटे जा राधे-राधे॥-७॥

 जग-राग-रहित, अति रागी, गोपीजन अति बड़भागी,
 जिन पायौ प्रभु कौ प्यार, भजे जा राधे-राधे॥-८॥

 गोपिन महँ सब सिरमौर, मुनि-मन-हर की चित-चोर,
 राधा की हूँ बलिहार, जपे जा राधे-राधे॥-९॥

 राधा की रसमयि लीला, को‌उ समुझै रसिक हठीला,
 जाकौ वेद न पायौ पार, रटे जा राधे-राधे॥-१०॥