रत्न बने लोचन इनमें से मन का मोती चुन लो तुम!
फूल चुने, आए डाली बन,
टपके हैं दृग से लाली बन;
मणि-माणिक हो जायँ, अगर प्रिय! करतल-राग अरुण दो तुम!
आँखों के धोए धागे हैं,
प्राणों के रस में रागे हैं,
पीतम्बर हो जायँ, अगर टुक अपने हाथों बुन दो तुम!
पतझर के दल हैं, सूखे हैं,
फिर भी ये मधु के भूखे हैं;
तर हो जायँ, अगर इन पर झुक अपने नयन करुण दो तुम!
रत्न बने लोचन इनमें से मन का धन तो चुन लो तुम!