Last modified on 26 दिसम्बर 2017, at 18:10

राग-विराग : नौ / इंदुशेखर तत्पुरुष

एक अदालत चल रही दिन-रात
वही वादी, वही प्रतिवादी
वही आरोप-प्रत्यारोप
वकील, दलील, गवाह
कुछ भी तो नया नहीं।
अजीब सनकी है न्यायाधीश
न थकता, न ऊबता
न फैसला सुनाता
न अदालत बर्खास्त ही करता।
तैरना यहां मृत्यु है, डूबना-जीवन।