रानी कीरति कुंवरि जाई॥
सुंदर सुभग मनोहर मंगल परम सुलच्छनि सब मन भाई।
सबै अलौकिक रूप मधुर गुन अमित प्रेम-सागर लहराई॥
चिदानंद-रस हरि की अह्लादिनि-सक्ति सहज निज रूप छिपाई।
धनि-धनि भाग भानु नृप के जिन के घर यह कन्या बनि आई॥
धनि रावल, धनि-धनि बरसानों, धनि गोपी, जिन गोद खिलाई॥
नंद-जसोदा धन्य, आइ जिन यहाँ सरित सुख-सुधा बहाई॥