रामचंद्र मुख-मंजु मनोहर भक्त-भ्रमर मन-हारक।
मंगल मूल मधुर मंजुल मृदु दिय सहज सुख-कारक॥
नित्य निरामय निर्मल अबिरल ललित कलित सुभ सोभित।
पाप-ताप-मद-मोह-हरन, मुनि-मन-सुचि-करन सुलोभित॥
नील-स्याम-तनु, धनु कर सोहत, बरद हस्त भय नासत।
सुमन-माल-सुरभित, मुक्त-मनि-हार लसत दुति भासत॥
पीत बसन सौंदर्य-सौर्य-निधि, भाल तिलक अति भ्राजत।
अखिल भुवनपति, सुषमा-श्री लखि, काम कोटि-सत लाजत॥