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राम-नाम-महिमा/ तुलसीदास/ पृष्ठ 5


राम-नाम-महिमा-4
 
 (97)
 
खेती न किसान को, भिखारी केा न भीख ,बलि,
 बनिकको बनिज, न चाकरको चाकरी।

 जीविकाबिहीन लोग सीद्यमान सोचबस,
 कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाई , का करी?’,

 बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।

दारिद-दसानन दबाई दुनी , दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।।


(98)

कुल-करतुति -भूति-कीरति -सुरूप-गुन-
 जौबन जरत जुर, परै न कल कहीं।

 राजुकाजु कुपथु , कुसाज भोग रोग ही के,
 बेद-बुध बिद्या पाइ बिबस बलकहीं।।

गति तुलसीकी लखै न कोउ , जो करत,
 पब्बयतें छार, छारै पब्बय पलक हीं ।ं

कासों कीजै रोषु , दोषु दीजै काहि, पाहि राम!
कियो कलिकाल कुलि खललु खलक हीं।।