राम की कृपालुता-7
( छंद संख्या 17,18)
(17)
कीबेको बिसोक लोक लोकपाल हुते सब,
कहूँ कोऊ भो न चरवाहो कपि-भालुको।
पबिको पहारू कियो ख्यालही कृपाल राम,
बापुरो बिभीषनु घरौंधा हुतो बालुको।।
नाम-ओट लेत ही निखोट होत खोटे खल,
चोट बिनु मोट पाइ भयो न निहालु को?
तुलसीकी बार बड़ी ढील होति सीलसिंधु !
बिगरी सुधारिबेको दूसरो दयालु को।17।
(18)
नामु लिएँ पूतको पुनीत कियो पातकीसु,
आरति निवारी ‘प्रभु पाहि’ कहें पीलकी।
छलनि छोंड़ी, सो निगोड़ी छोटी जाति-पाँति,
कीन्ही लीन आपुमें सुनारी भोंड़े भीलकी।।
तुलसी औ तोरिबो बिसारिबो न अंत मोहि,
नीकें हैं प्रतीति रावरे सुभाव-सीलकी।।
देऊ , तौं दयानिकेत, देत दादि दीननको,
मेरी बार मेरें ही अभाग नाथ ढील की।18।