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राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 10

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राम की कृपालुता10


( छंद संख्या 19,20)

(19)

आगें परे पाहन कृपाँ किरात कोलनी,
कपीस, निसिचर अपनाए नाएँ माथ जू।

साँची सेवकाई हनुमान की सुजानराय,
रिनियाँ कहाए हौं, बिकाने ताके हाथ जू।

बात चलें बातको न मानिबो बिलगु , बलि,
काकीं सेवाँ रीझिकै नेवाजो रघुनाथ जू?

 (20)

कौसककी चलत, पषानकी परस पाय,
 टूटत धनुष बनि गई है जनककी।

कोल, पसु, सबरी, बिहंग, भालु , रातिचर,
 रतिनके लालचिन प्रापति मनककी।

कोटि-कला-कुसल कृपाल नतपाल! ब्लि,
 बातहू केतिक तिन तुलसी तनककी।

राय दसरत्थके समत्थ राम राजमनि!
त्ेारें हेरें लोपै लिपि बिधिहू गनककी।20।