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राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 11

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राम की कृपालुता 11


( छंद संख्या 21,22)

(21)

सिला -श्रापु पापु गुह-गीधको मिलापु
 सबरीके पास आपु चलि गए हौ सो सुनी मैं।

सेवक सराहे कपिनायकु बिभीषनु,
 भरतसभा सादर सनेह सुरधुनी मैं।।

आलसी-अभागी- अघी -आरत-अनाथपाल,
साहेबु समर्थ एकु ,नीकें मन गुनी मैं।

देाष-दुख-दारिद-दलैया दीनबंधु राम!
 ‘तुलसी’ न दूसरो दयानिधानु दुनी मैं।21।

(22)

मीतु बालिबंधु , पूतु , दूतु, दसकंधबंधु
सचिव , सराधु कियो सबरी-जटाइनको।

 लंक जरी जोहें जियँ सोचुसो बिभीषनुको,
 कहौ ऐसे साहेबकी सेवाँ न खटाइ को।


 बड़े एक-एकतें अनेक लोक लोकपाल ,
 अपने-अपनेको तौ कहैगो घटाइ को।
साँकरेके सेइबे सराहिबे, सुमिरिबेको,
 रामु सो न साहेबु न कुमति -कटाइ को।22।