डाले जा चुके खत
डाक की पेटियों में
कल चले जाएंगे वे संवेदित स्वर
पूरब जंघाओं के लाल चीरे से निकलते
तुम्हारे खेत की मेड़ों पर
बादल फुदके होंगे धन वाले
पनीवट की राह में
उछल आये होंगे
जैसे उतावले थे मंडियां जाने को घरों से
निकले किसी दिन चावल के बोरे
मत हकलाना तुम
घूमते हुए मेरे गांव की संकरी गलियां
लौटेंगे कभी उजाले के आस-पास
जैसे दुनिया की सबसे लंबी पगडंडी से
गुजरता रोज सुबह सूरज
उग ही आता है मेरे तिकोन वाले खेत के बीच।