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रोटी का प्रश्न / मुकेश निर्विकार

वैसे तो नाप ली है गोलाई हमने
सूरज और चंद्रमा की भी
मगर, कब नाप सके हैं हम
रोटी की परिधि कभी?
कब कर सके हैं हल
रोटी का प्रश्न हम?

रोटी का प्रश्न
इतना बड़ा है
की इसी सुलझाने की कोशिश में
हो गये हैं बेहाल हम!

रोटी की परिधि
इतनी विस्तीर्ण हैं
की समा गया है इसमें
सब कुछ हमारा
यहाँ तक कि
आत्मा भी

रोटी का वजन
इतना भारी है
की जुगाड़ में इसके
पूरे तुल गये हैं हम
अपने चरित्रबल के साथ!
रोटी
महज सामान्य-सी चीज नहीं होती
रोटी
सबसे बड़ी मजबूरी है मानवता की!
रोटी के लिए
ज़ार-ज़ार हो जाती है
मानवता