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वरली सी फेस / शरद कोकास

रेत पर कीड़े-मकोड़े चुगने वाली चिड़िया की तरह
अंधेरा होते ही बाहर आ जाती हैं
ढेर सारी स्मृतियाँ
फुदकती हैं मन की कठोर चट्टानों पर
दरारों में झाँकती हैं
शायद कहीं कुछ जल अभी भी शेष हो
सुख की तरह उछलती कोई नन्ही मछली
चोंच में दबाकर
फिर गुम हो जाती हैं अंधेरे में कहीं।

-2009