आली! वह अँधेरी रात!
कामना-सी तारिकाएँ
भग्न किस उर की कथाएँ
मौन इंगित से बताना
चाहतीं क्या बात?
याद-से कुछ मेह छाए,
दाग-सा दिल में छिपाए,
पूछता किसका पता, यह
बावला-सा वात?
मुग्ध सुख की कल्पना से,
स्वप्न से, छाए कुहासे;
किस निठुर का नाम रटते
तोड़ते दम, पात?