Last modified on 3 दिसम्बर 2017, at 10:38

विचित्र युद्ध / इंदुशेखर तत्पुरुष

कैसा यह विचित्र युद्ध
कैसे विचित्र अस्त्र-शस्त्र इसके
एक फूल जैसे हल्के
शब्द की नोंक से
चिर जाता कभी
आंसुओं का बादल
कभी दो बूंद
आंसुओं में डूब जाता
समूचा शस्त्रागार।