Last modified on 17 जून 2012, at 07:35

विनयावली / तुलसीदास / पद 221 से 230 तक / पृष्ठ 5


पद संख्या 229 तथा 230

 (229)

गगैरी जीह जो कहौं औरको हौं ।
 जानकी -जीवन! जनम-जनम जग ज्यायो तिहारेहि कौरको हौं।1।

 तीनि लोक, तिहुँ काल न देखत सुहृद रावरे जोरको हौं।
 तुमसों कपट करि कलप-कलप कृमि ह्वैहौं नरक घोरको हौं।2।

कहा भयो जो मन मिलि कलिकालहिं कियो भौतुवा भौरको हौं।
 तुलसिदास सीतल नित यहि बल, बड़े ठेकाने ठौरको हौं।3।

(230)

अकारन को हितू और को है।
बिरद ‘गरीब-निवाज’ कौनको, भौंह जासु जन जोहैं।1।

छोटो -बड़ो चहत सब स्वारथ , जो बिरंचि बिरचो है।
कोल कुटिल , कपि -भालु पालिबो कौन कृपालुहि सोहै।2।

 काको नाम अनख आलस कहेें अघ अवगुननि बिछौहै।
को तुलसीसे कुसेवक संग्रह्यो, सठ सब िदन साईं द्रोहै।3।