{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''मुझे शब्द चाहिए'''
हँसना चाहता हूँ
इतनी जोर ज़ोर की हँसी चाहिए
जिसकी बाढ़ में बह जाए
मन की सारी कुण्ठाएंकुण्ठाएँ
रोना चाहता हूँ
जैसे बहती रहती है नदी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे अन्दर निरंतर
जैसे भीनता रहता रहती है वायु
फेफड़ों की सतह पर
बात करना चाहता हूँ
मुझे वायु जैसे शब्द चाहिए
और नदी जैसी भाषा*
</poem>