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03:04, 20 दिसम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=लाला जगदलपुरी
|संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश / लाला जगदलपुरी
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<poem>
इस धरती के राम जंगली,
इसके नमन-प्रणाम जंगली।
कुडई, कुंद, झुईं सम्मोहक,
वन-फूलों के नाम जंगली।
वन्याओं-सी वन छायाएं,
हलवाहे सा घाम जंगली
भरमाते चांदी के खरहे,
स्वर्ण मृगों के चाम जंगली।
यहाँ प्रभात ‘पुष्पधंवा’ सा,
मीनाक्षी सी शाम जंगली।
शकुंतला सी प्रीति घोटुली,
दुष्यंती आयाम जंगली।
दिशाहीन, अंधी आस्था के,
जीवन का संग्राम जंगली।
</poem>