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सरे शहर में एक भी तो घर बचा नहीं / कुमार अनिल
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15:19, 28 दिसम्बर 2010
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|रचनाकार=कुमार अनिल
|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
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<poem>सारे शहर में एक भी तो घर बचा नहीं
कल रात कोई हादसा जिसमे हुआ नहीं
Shrddha
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