गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
छिपा हुआ हो चंदा जो बादल में कुछ / कुमार अनिल
3 bytes removed
,
03:01, 2 जनवरी 2011
उसका मुखड़ा चमके यूँ आँचल में कुछ
लगता है अब वो भी सियासत
भूल
सीख
गया
उसकी बातें पल में कुछ हैं पल में कुछ
नई बात है जैसे ताजमहल में कुछ
लहरें उटठी
यादों की दिल में ऐसे
फेंका हो कंकर सा जैसे जल में कुछ
Kumar anil
162
edits