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19:08, 5 जनवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
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<poem>
गर तुम्हें साथ मेरा गवारा नहीं
मासेवा एक के कोई चारा नहीं
जाने वाला कभी लौट आएगा ख़ुद
इसलिए मैंने उसको पुकारा नहीं
क्यों ख़फ़ा हो गए क्या ख़ता है मेरी
हक़ तुम्हारा कभी हमने मारा नहीं
हसरते दीद, दिल की, रही दिल में ही
तू ने ज़ुल्फ़ों को अपनी संवारा नहीं
ज़िन्दगी मेरी ख़ुशबू भी है फूल भी
मेरी आहों में लेकिन शरारा नहीं
उसको ख़ुशियों की मंज़िल मुक़द्दर ने दी
कोशिशों से जो इन्सान हारा नहीं
आज है कौन दुनिया में ऐसा 'रक़ीब'
गर्दिशे वक़्त ने जिसको मारा नहीं
</poem>