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ये सीढ़ियाँ ही ढलान की हैं / श्रद्धा जैन
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15:45, 14 जनवरी 2011
नसीब-ए-शब् में सहर है इक दिन
ये बातें बस खुशगुमान की हैं
क़तर के पर, वो कहे है 'श्रद्धा'
खुली हदें आसमान की हैं
</poem>
Shrddha
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