हम कभी मिल सकें मगर शायद <br><br>
जान पहचान से ही क्या होगा <br>
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद <br><br>
मुन्तज़िर जिन के हम रहे तुम हो उनको <br>
मिल गये और हमसफ़र शायद <br><br>
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं "फ़राज़" <br>
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद <br><br>