चिताएँ ये संविधान की हैं
फ़साद करना मिठाइयाँ बस वो ही हैं फीकीजो सब से ऊँची दुकान की हैं फसाद दिल में है जिनका पेशाऔर लब परउन्हीं को फिकरें जहान सदाएँ अम्न ओ अमान की हैं
खुलूस, नेकी, वफ़ा, भलाई
नसीब-ए-शब् में सहर है इक दिन
ये बातें बस किस खुशगुमान की हैं मिठाइयाँ बस वो ही हैं फीकीजो सब से ऊँची दुकान की हैं ?
क़तर के पर, वो कहे है पर क़तर कर ये बोला 'श्रद्धा'
खुली हदें आसमान की हैं
</poem>