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{{KKRachna
|रचनाकार=चाँद हादियाबादी
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कुछ दिनों में आने वाला है दिसम्बर आएगा
माँग में उसकी सितारे चाँद वो भर जाएगा

नाच उठ्ठेगी ख़ुशी में झूमकर वो महजबीं
उसकी ज़ुल्फ़ों में कोई जुगनू सजाकर जाएगा

रात भर सरगोशियाँ होती रहेंगी देर तक
उसके कानों में कोई मिसरी का रस भर जाएगा

आज तन्हाई का आलम है तो कल होगा मिलन
झील-सी आँखों में वो ख़ुशियोँ के जल भर जाएगा

वस्ल में वो भूल जाएगी शबे फुर्क़त के ग़म
उसके ज़ख़्मों पर वो मरहम का असर कर जाएगा

प्यार से अपने तेरी रग-रग में भर देगा निशात
शरबती आँखोँ में तेरी नश्शा वो भर जाएगा

अपनी ख़ुश्बू से खिलाएगा तेरे तन मन में फूल
महक उठ्ठोगी तुझे चंदन बनाकर जाएगा </poem>