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06:11, 17 फ़रवरी 2011 हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए ।
तेरे होठों के फूलों की चाहत में
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए ।
हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए ।
दार - फ़ाँसी का तख़्त, तारीक - अंधेरे, नीम - धुधला, कम रोशन
......
चले आए जहाँ तक लाए क़दम
लबों पर हर्फ़-ए-ग़ज़ल दिल में क़िन्दील-ए-ग़म ।
अपमा ग़म था गवाही तेरे हुस्न की
देख इस गवाही पर क़ायम रहे हम ।
(To be completed)