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01:42, 11 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल
|संग्रह=
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<poem>
मुक्त यौनाचार में
खोजना और स्थापित करना
मेरी मुक्ति
असल में मुझे
देह की हदबन्दियों में
रखने की कोशिश
जिसके अंतर्गत
कभी भी / कहीं भी
और कोई भी
चाह सकता है मेरी देह
इंकार पर
भीरू- पुरानी /ख़ालिस घरेलू
औरत कह कर
तरस खा सकता है
हाशिए में धकेल कर मुझे
सुर्ख़ियों में आ सकता है
</poem>