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'''लेखन वर्षरचना काल: 2004'''
काश यह सन्दली शाम महक जाती
सबा* <ref>सुबह की ताज़ा हवा</ref> तेरी ख़ुशबू वाले ख़त लाती
तुझसे इक़रार का बहाना जो मिलतातो शायद मेरी क़िस्मत शायद सँवर जाती
दीप आरज़ू का जलता है मेरे लहू सेदिल में
काश तू इश्क़ बनके मुझे बुलाती
दूरियाँ दिल का ज़ख़्म बनने लगीं हैं
होता यह ये काश नज़दीकियों में बदल जाती सबा: ताज़ा हवा, breeze
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