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यही जो आज इस बस्ती के लोगों को खले होंगे / शतदल
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16:39, 25 मार्च 2011
हमारी कौम ने जो बाग़ सींचे थे लहू देकर
तुम्हारी हद में वो बेसाख़्ता फूले-फले
होंगे।
होंगे ।
हमारे पास थोड़े लफ्ज़ हैं कहना बहुत कुछ है
हवन में हाथ औरों के भी मुमकिन है जले होंगे ।
</poem>
अनिल जनविजय
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