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|रचनाकार=केशव (रीतिकालीन कवि)
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[[Category:छंद]]
<poem>
पवन चक्र परचंड चलत, चहुँ ओर चपल गति ।
भवन भामिनी तजत, भ्रमत मानहुँ तिनकी मति ॥
संन्यासी इहि मास होत, एक आसन बासी ।
पुरुषन की को कहै, भए पच्छियौ निवासी ॥

इहि समय सेज सोबन लियौ, श्रीहिं साथ श्रीनाथ हू ।
कहि केसबदास असाढ़ चल, मैं न सुन्यौ श्रुति गाथ हू ॥
</poem>
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