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01:22, 28 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ग्वाल
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[[Category:पद]]
<poem>
मेष-वृष तरनि तचाइन के त्रासन तें,
सीतलाई सब तहखानन में ढली है ।
तजि तहखाने गई सर, सर तजि कंज,
कंज तजि चंदन-कपूर पूर पली है ॥
ग्वाल कवि ह्याँ तें चंद में ह्वै चाँदनी में गई,
चाँदनी तें सोरा मिले जल माँहि रली है ।
सोरा जल हूं ते धसी ओरा, फिर ओरा तजि,
बोराबोर ह्वै करि हिमाचल में गली है ॥
</poem>