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16:56, 28 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=देव
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ग्रीषम प्रचंड घाम चंडकर मंडल तें,
घुमड्यौ है ’देव’ भूमि मंडल अखंड धार ।
भौन तें निकुंज भौन, लहलही डारन ह्वै,
दुलही सिधारी उलही ज्यों लहलही डार ॥
नूतन महल, नूत पल्लवन छवै छवै से,
दलवनि सुखावत पवन उपवन सार ।
तनक-तनक मनि-नूपुरु कनक पाई,
आइ गई झनक-झनक झनकारवार ॥
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