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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 27
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14:44, 6 अप्रैल 2011
'''( त्रिजटा का आश्वासन )'''
त्रिजटा कहति बार-बार तुलसीस्वरीसों,
लोकपति-कोक-सोक मुँदे कपि-कोकनद,
दंड द्वै रह हैं रघु -आदित-उवनके।।
</poem>
Dr. ashok shukla
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