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'''( त्रिजटा का आश्वासन )'''
 
त्रिजटा कहति बार-बार तुलसीस्वरीसों,
लोकपति-कोक-सोक मुँदे कपि-कोकनद,
दंड द्वै रह हैं रघु -आदित-उवनके।।
 
 
</poem>
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