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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 27
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( त्रिजटा का आश्वासन )
त्रिजटा कहति बार-बार तुलसीस्वरीसों,
‘राधौ बान एकहीं समुद्र सातौं सोषिहै।
सकुल सँघारि जातुधान -धारि जम्बुकादि,
जोगिनी-जमाति कालिकाकलाप तोषिहैं।।
राजु दै नेवाजिहैं बजाइ कै बिभीषनै,
बजैंगे ब्योम बाजने बिबुध प्रेम पोषिहैं।।
कौन दसकंधु, कौन मेधनादु बापुरो,
को कुंभकर्नु कीटु, जब रामु रन रोषिहैं’।।
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बिनय -सनेह सों कहति सीय त्रिजटासों ,
पाए कछु समाचार आरजसुवनके।
पाए जू, बँधायो सेतु उतरे भानुकुलकेतु,
आए देखि -देखि दूत दारून दुवनके।।
बदन मलीन, बलहीन, दीन देखि, मानो,
मिटै घटै तमीचर-तिमिर भुवनके।
लोकपति-कोक-सोक मुँदे कपि-कोकनद,
दंड द्वै रह हैं रघु -आदित-उवनके।।