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अश्क़ पलकों पे फिर सजाऊं क्या / ज़िया फ़तेहाबादी
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01:52, 7 अप्रैल 2011
लाख परदे , हज़ार चहरे हैं
ऐ " ज़िया " अब नज़र हटाऊं क्या ?
</poem>
Ravinder Kumar Soni
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