|संग्रह=फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
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उसके वे नयन जो किशोर हैं,
रूप के विभोर जो चकोर हैं,
ऎसा ऐसा कुछ :: आज मुझे भा गए--
कि बावरा बना गए !
आह ! मुझे
प्यार की पुकार से
:: निहार गए, :: और मुझे
म्लान हुए हार-सा
उतार गए ।
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