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<poem>
'''लेखन वर्ष: 2004२००४/२०११'''
मैं बहुत तन्हा रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
साँसों में हर साँस ग़म पिरोया, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
सब कुछ खोया कुछ न पाया इस तेरी दुनिया मेंपल-पल मैं हरपल तड़पा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
आसमाँ ओढ़े बैठी रही है तेरे लिए इक सदी<ref>सौ वर्ष का समय</ref>रोशनी न चन्द्रमा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
बहती रही तेरे ही जानिब, ज़मीं इश्क़ में
न’असरकार रही <ref>जिसका कोई असर न हो</ref> है दुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
हम खिंचे चले जाते हैं किस ओर क्या पता
हर तरफ़ नया चेहरा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
ऊदी हुई <ref>भीगा</ref> आँखों में नम है एक पुराना बीता मौसमहर साँस में लिपटा अटका हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
था बहुत सख़्तजान <ref>मजबूत दिल वाला</ref> तेरा यह उम्मीदवार‘नज़र’ नाचार हुआदर्दख़ाह<ref>दर्द की इच्छा रखने वाला</ref> रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
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