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मैं बहुत तन्हा रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००४/२०११

मैं बहुत तन्हा रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
हर साँस ग़म पिरोया, बिगैर तेरे ज़िन्दगी

सब कुछ खोया कुछ न पाया तेरी दुनिया में
पल-पल हरपल तड़पा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी

आसमाँ ओढ़े बैठी है तेरे लिए सदी<ref>सौ वर्ष का समय</ref>
रोशनी न चन्द्रमा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी

बहती रही तेरे ही जानिब, ज़मीं इश्क़ में
न’असरकार<ref>जिसका कोई असर न हो</ref> है दुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी

हम खिंचे चले जाते हैं किस ओर क्या पता
हर तरफ़ नया चेहरा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी

ऊदी<ref>भीगा</ref> आँखों में नम है एक बीता मौसम
हर साँस अटका हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी

था बहुत सख़्तजान<ref>मजबूत दिल वाला</ref> तेरा यह उम्मीदवार
‘नज़र’ दर्दख़ाह<ref>दर्द की इच्छा रखने वाला</ref> रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी

शब्दार्थ
<references/>