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रोबोट / किरण अग्रवाल
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17:26, 23 अप्रैल 2011
<poem>
और एक दिन नींद खुलेगी हमारी
और हम
पाऐंगे
पाएँगे
कि आसमान नहीं है हमारे सिर के ऊपर
कि प्रयोगशालाओं के भीतर से निकलता है तन्दूरी सूरज
डा० जगदीश व्योम
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