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मेरी मिट्टी में / ओएनवी कुरुप
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05:55, 13 मई 2011
केवड़ों के हाथों में
नुकीले नाख़ून हैं ।
यहाँ की मिटटी में
धंसी हुई है क्या
स्वर्गिक ख़ुशी
अभी तक नहीं मिली है जो
जब थककर
मैं लौट आया वहाँ से
तो दीया बुझ गया
वहाँ पड़े रह गए बस सफ़ेद फूल
'''मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स'''
</poem>
अनिल जनविजय
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