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सात रंगों की गलबहींगलबहियाँआकाश को का श्रृंगार किये दे रहे कर रही हैं ।
एक गुरुत्त्वाकरषेनीय गुरुत्त्वाकर्षनीय निराकार -आँखों में भर रहा हूँ, मुँह फ़िराने फिराने से कहीं खो न जाय जाए
रों रहा है मन, एक दाग याद आता है
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