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|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
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भोर के तारे से मुतअलिक़

उसे तो मेहरो-माह, दोनों नेमतें हासिल,
और इस पर भी वहम सबको वो अकेला है!

(मुतअलिक़ - सम्बंधित; मेहरो-माह - सूरज और चाँद; नेमतें - खुदाई देन)

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टेलीफून से मुतअलिक़:

टिकी है फित्रतन, अपनी तो हर निगह वहीं,
बजा, बजा, न बजा! सब है बजा तेरे लिए!

(मुतअलिक़ - बारे में; फित्रतन - स्वभावतन; बजा - सही / बजना)

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