भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विविध / रेशमा हिंगोरानी
Kavita Kosh से
भोर के तारे से मुतअलिक़
उसे तो मेहरो-माह, दोनों नेमतें हासिल,
और इस पर भी वहम सबको वो अकेला है!
(मुतअलिक़ - सम्बंधित; मेहरो-माह - सूरज और चाँद; नेमतें - खुदाई देन)
«»«»«»«»«»«»
टेलीफून से मुतअलिक़:
टिकी है फित्रतन, अपनी तो हर निगह वहीं,
बजा, बजा, न बजा! सब है बजा तेरे लिए!
(मुतअलिक़ - बारे में; फित्रतन - स्वभावतन; बजा - सही / बजना)
«»«»«»«»«»«»