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|पीछे=गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 12
|आगे=गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 101 तक26 से 35/ पृष्ठ 2
|सारणी=गीतावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 13
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'''(10126)'''
जबतें लै मुनि सङ्ग सिधाए |कैसे पितु-मातु, कैसे ते प्रिय-परिजन हैं ? राम लखनके समाचारजगजलधि ललाम, सखि तबतें कछुअ न पाए लोने लोने, गोरे-स्याम,जोन पठए हैं ऐसे बालकनि बन हैं ||
बिनु पानही गमनरुपके न पारावार, फल भोजनभूपके कुमार मुनि-बेष, भूमि सयन तरुछाहीं देखत लोनाई लघु लागत मदन हैं | सरसुखमाकी मूरति-सरिता जलपानसी साथ निसिनाथ-मुखी, सिसुनके सँग सुसेवक नाहीं नखसिख अंग सब सोभाके सदन हैं ||
कौसिक परम कृपालु परमहितपङ्कज-करनि चाप, समरथतीर-तरकस कटि, सुखद, सुचाली सरद-सरोजहुतें सुन्दर चरन हैं | बालक सुठि सुकुमार सकोचीसीता-राम-लषन निहारि ग्रामनारि कहैं,हेरि, हेरि, समुझि सोच मोहि आली हेरि! हेली हियके हरन हैं ||
बचन सप्रेम सुमित्राके सुनि सब सनेह-बस रानी प्रानहूके प्रानसे, सुजीवनके जीवनसे,प्रेमहूके प्रेम, रङ्क कृपिनके धन हैं | तुलसी आइ भरत तेहि औसर कही सुमङ्गल बानी तुलसीके लोचन-चकोरके चन्द्रमासे,आछे मन-मोर चित चातकके घन हैं ||
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