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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 1
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कैसे पितु-मातु, कैसे ते प्रिय-परिजन हैं ?
जगजलधि ललाम, लोने लोने, गोरे-स्याम,
जोन पठए हैं ऐसे बालकनि बन हैं ||
रुपके न पारावार, भूपके कुमार मुनि-बेष,
देखत लोनाई लघु लागत मदन हैं |
सुखमाकी मूरति-सी साथ निसिनाथ-मुखी,
नखसिख अंग सब सोभाके सदन हैं ||
पङ्कज-करनि चाप, तीर-तरकस कटि,
सरद-सरोजहुतें सुन्दर चरन हैं |
सीता-राम-लषन निहारि ग्रामनारि कहैं,
हेरि, हेरि, हेरि! हेली हियके हरन हैं ||
प्रानहूके प्रानसे, सुजीवनके जीवनसे,
प्रेमहूके प्रेम, रङ्क कृपिनके धन हैं |
तुलसीके लोचन-चकोरके चन्द्रमासे,
आछे मन-मोर चित चातकके घन हैं ||