भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 2
Kavita Kosh से
(27)
रागभैरव
देखि! द्वै पथिक गोरे-साँवरे सुभग हैं |
सुतिय सलोनी सङ्ग सोहत सुभग हैं ||
सोभासिन्धु-सम्भव-से नीके नीके नग हैं |
मातु-पितु-भाग बस गए परि फँग हैं ||
पाइँ पनह्यो न, मृदु पङ्कज-से पग हैं
रुपकी मोहनी मेलि मोहे अग-जग हैं ||
मुनि-बेष धरे, धनु-सायक सुलग हैं |
तुलसी-हिये लसत लोने लोने डग हैं ||