937 bytes added,
17:27, 20 जून 2011 <poem>
बोल सुण्या जब साधू का, खाटका लग्या गात के म्हाँ ।
पाटमदे झट चाल पङी, उनै भोजन लिया हाथ के म्हाँ ॥
उठ्ण लागी ल्हौर बदन मैं, जब नैनो से नैन लङी ।
मेरे पिया बिन सोचे समझे, या गलती करदी बोहोत बङी ॥
हिया उझळ कै आवण लाग्या, आंख्यां तै गई लाग झङी ।
हाथ जोङ कै पाटमदे झट, शीश झुका कै हुई खङी ॥
कह "लख्मीचन्द" न्यूँ बोली, तू क्युं ना रह्या साथ के म्हाँ ॥ पाटमदे झट चाल पङी...........
</poem>