भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोल सुण्या जब साधू का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोल सुण्या जब साधू का, खाटका लग्या गात के म्हाँ ।
पाटमदे झट चाल पङी, उनै भोजन लिया हाथ के म्हाँ ॥

उठ्ण लागी ल्हौर बदन मैं, जब नैनो से नैन लङी ।
मेरे पिया बिन सोचे समझे, या गलती करदी बोहोत बङी ॥
हिया उझळ कै आवण लाग्या, आंख्यां तै गई लाग झङी ।
हाथ जोङ कै पाटमदे झट, शीश झुका कै हुई खङी ॥

कह "लख्मीचन्द" न्यूँ बोली, तू क्युं ना रह्या साथ के म्हाँ ॥ पाटमदे झट चाल पङी...........