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प्यार में यों भी जीना हुआ / गुलाब खंडेलवाल
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20:10, 11 अगस्त 2011
चैन था मर भी जाते कभी
यह तो मर-
मर के
मरके
जीना हुआ
हमको तलछट मिला अंत में
वह तो बस मुस्कुरा भर दिए
खून
ख़ून
अपना पसीना हुआ
अब तो पतझड़ है शायद! गुलाब
ठाठ पत्तों का झीना हुआ
<poem>
Vibhajhalani
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