Last modified on 12 अगस्त 2011, at 01:40

प्यार में यों भी जीना हुआ / गुलाब खंडेलवाल


प्यार में यों भी जीना हुआ
आँखों-आँखों ही पीना हुआ

चैन था मर भी जाते कभी
यह तो मर-मरके जीना हुआ

हमको तलछट मिला अंत में
वह भी औरों से छीना हुआ

शेर वैसे तो कुछ भी नहीं
जड़ गया तो नगीना हुआ

वह तो बस मुस्कुरा भर दिए
ख़ून अपना पसीना हुआ

अब तो पतझड़ है शायद! गुलाब
ठाठ पत्तों का झीना हुआ